यूँ तो प्राहा (चेक गणराज्य की राजधानी) एक ख़ूबसूरत और स्वच्छ शहर है। लेकिन यहाँ कि सड़कों पर जिन लोगों को मैंने देखा, उन्होंने मुझे हैरान तो नहीं लेकिन सोचने पर मजबूर ज़रूर किया। भारत में दर्शनीय स्थानों, धार्मिक स्थलों आदि के पास भीखमंगो (भिखारियों) से आपका वास्ता अवश्य पड़ा होगा। भारत के भीखमंगे आमतौर पर राहगीरों से भीख मांगने के लिए, बहुत मिन्नतें करते हैं। नौबत यहाँ तक आ जाती है कि पैसे लेने के लिए हाथ-पैर तक पकड़ने लगते हैं। लेकिन प्राहा की सड़कों पर भीख माँगने का जो नायाब तरीक़ा देखा वो अपने आप में निराला ही है। प्राहा की सड़कों पर चहलकदमी करते हुए आपको अचानक कोई आदमी दिखाई देगा जो दंडवत प्रणाम की मुद्रा में सड़क पर लेटा होगा। आँखें नीची और उसका चेहरा आपको स्पष्ट नहीं दिखेगा। सिर के सामने एक टोपी पड़ी होगी जिसमें चंद सिक्के नज़र आएंगे। राहगीर अपनी मर्ज़ी से टोपी में पैसे डाल सकते हैं। जब यह दृश्य मैंने पहली दफ़ा देखा तो कुछ समझ नहीं पाया। लेकिन थोड़ी देर में बात समझ में आई कि वह व्यक्ति भीख माँग रहा है। एक ख़ास बात और नज़र आई कि कई भीखमंगो के साथ उनका एक पालतू कुत्ता भी लेटा दिखाई दिया। भीखमंगे राहगीरों से किसी भी तरह की बातचीत या मिन्नतें नहीं करते हैं। लेकिन उनका इस तरह से झुककर और टोपी फैलाकर भीख देने का आग्रह करना ही यहाँ के हिसाब से बहुत शर्मनाक है। कहना यह है कि धनियों के देश में कोई व्यक्ति ऐसा क्यों करेगा यदि उसे पैसे की दरकार न हो। शायद यही वज़ह है कि इस प्रकार से दिन भर भीख माँगकर कई लोगों का पेट पलता है। रोटी के लिए आदमी क्या न कर गुज़रे, भला कमर ही क्यों न अकड़ जाए।

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