बहुत पुरानी बात है। किसी जंगल में भगवान बुद्ध को एक जहरीला साँप मिला। उसका आस-पास के गाँवों में बड़ा आतंक था। बुद्ध ने उसे मनुष्यों को काटने-डसने से मना किया और अहिंसा का मार्ग दिखाया। साँप बुद्ध का अनुयायी हो गया। कुछ महीनों बाद –
जब बुद्ध उसी जंगल के पास के एक गाँव से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि लोग एक साँप को ईंट-पत्थरों से मार रहे हैं। बुद्ध ने लोगों को उस साँप को मारने से रोका। तब उस लहू-लुहान घायल साँप ने बताया कि वह वही भक्त साँप है जो उन्हें जंगल में मिला था। साँप ने बताया कि उसने बुद्ध के आदेश का पालन करते हुए लोगों को काटना-डसना छोड़ दिया था। फिर भी लोगों ने मार-मार कर उसकी यह हालत कर दी। भगवान बुद्ध ने साँप से कहा – “मैंने काटने-डसने के लिए मना किया था मित्र, फुफकारने के लिए नहीं। तुम्हारी फुफकार से ही लोग भाग जाते।”शिक्षा: काटो-डसो मत फुफकारों अवश्य।
Do not Bite but Don’t forget to Hiss
Do not Bite but Don’t forget to Hiss