कुछ दिनों पहले यह गीत सुना और पापा से पता चला कि यह गीत अपने समय का बड़ा क्रांतिकारी गीत था। साहिर लुधियानवी साहब द्वारा लिखा गया यह गीत ’प्यासा ’फिल्म के गुरूदत्त पर फिल्माया गया था। कुछ लोग बताते हैं कि शायद इसी गीत की वजह से ’प्यासा’ जैसी अनोखी फिल्म को किसी राष्ट्रीय पुरस्कार से नही नवाजा गया। नेहरू सरकार को यह गीत कतई गले नही उतरा होगा। शायद अब कुछ बदल गया है पर अब भी बहुत कुछ बदलना है…तब तक यह गीत सार्थक रहेगा। गीत की लाईने नीचे पढ़ें….
ये कूचे, ये नीलाम घर दिलकशी के
ये लुटते हुए कारवां ज़िंदगी के
कहाँ हैं, कहाँ हैं मुहाफ़िज़ खुदी के
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं,
कहाँ हैं, कहाँ हैं, कहाँ हैं
ये पुरपेंच गलियां, ये बदनाम बाज़ार,
ये गुमनाम राही, ये सिक्कों की झनकार,
ये इसमत के सौदे, ये सौदों पे तकरार
जिन्हे नाज़ …
ये सदियों से बेखौफ़ सहमी सी गलियां
ये मसली हुई अधखिली ज़र्द कलियां
ये बिकती हुई खोखली रंगरलियाँ
जिन्हे नाज़ …
वो उजले दरीचों में पायल की छन छन
थकी हारी सांसों पे तबले की धन धन
ये बेरूह कमरों मे खांसी कि ठन ठन,
जिन्हे नाज़ …
ये फूलों के गजरे, ये पीकों के छींटे
ये बेबाक नज़रे, ये गुस्ताख फ़िक़रे
ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे
जिन्हे नाज़ …
यहाँ पीर भी आ चुके हैं,जवां भी
तन-ओ-मन्द बेटे भी,अब्बा मियाँ भी
ये बीवी है और बहन है, माँ है,
जिन्हे नाज़ …
मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी,
यशोदा की हम्जिन्स राधा की बेटी
पयम्बर की उम्मत ज़ुलेखा की बेटी,
जिन्हे नाज़ …
ज़रा इस मुल्क के रहबरों को बुलाओ,
ये कूचे ये गलियां ये मंज़र दिखाओ,
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको लाओ,
जिन्हे नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं,
कहाँ हैं, कहाँ हैं, कहाँ हैं…
– साहिर लुधियानवी (फिल्म प्यासा से)
गीत सु्नने के लिए यहाँ जाएँ….
http://www.youtube.com/watch?v=34dkJu3LOv8
wonderful and subtle comment on disillusion of nehruvian dream of socialism.
i die hard fan of Gurudutt and planning to work on him
i agree with the writer that due to this Pyassa might have not been awarded with many national honors as it has deserved a lot many
I don’t know how to write here in Hindi( I am new to the I’net)
Mr. Abhishek has brought out a remarkable topic here, it touches heart. The song was and is the reality of our time, such song sounds from the Aatma of koti-koti indians. Sahir Ludhiyanvi and great Guru Dutt have been,and being awarded by millions of people,from their heart and sole, why the needed formal award from politicians.
धन्यवाद चौरे जी और देशमुख जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए और यहाँ आने के लिए। प्यासा के गीतों की सार्थकता तब भी थी और अब भी है।पुन: धन्यवाद….