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ईद
— हाजी शम्सुद्दीन

(नई दिल्ली पालिका समाचार, दिल्ली, के अक्टूबर 1974 अंक में प्रकाशित)
[लेखकीय पता: 7/150, बैजनाथ पारा, रायपुर (मध्य प्रदेश, वर्तमान में छत्तीसगढ़)]

ईद ख़ुशी का त्यौहार है। यह मुसलमानों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार होता है। इसका आरम्भ हिजरी सन् 2 से हुआ। उस समय इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद साहब ने पहली बार ईद की नमाज़ पढ़ी थी तथा तमाम मुसलमानों को ईद मनाने का हुक्म दिया था। ईद के दिन मुसलमान घर में प्रत्येक व्यक्ति के पीछे कुछ निश्चित रकम अथवा अनाज दान के लिये निकालते हैं जिसे “फ़ितरा” कहते हैं। इसी कारण ईद को ईदुल फ़ितर भी कहते हैं। ईद से पहले रमज़ान का महीना आता है। इसी महीने में मुसलमानों का धार्मिक ग्रन्थ क़ुरान मजीद नाज़िल हुआ था जिसे अल्लाह के नेक बंदों ने हाथों-हाथ ले लिया तथा उसके अनुसार काम करने लगे। उसने यह ऐलान किया कि उसमें बताये गये रास्तों पर चलने के लिये यदि उन्हें भूख और प्यास का सामना करना पड़े तो करेंगे, यदि कष्ट उठाना पड़ा तो उठायेंगे, किन्तु अपने अल्लाह और उसके मुहम्मद के बताये रास्ते को कभी नहीं छोड़ेगे। पूरे रमज़ान भर इसी बात का पालन करते हुए मुसलमान रोज़े रखते हैं। इसमें दिन निकलने से लेकर दिन डूबने तक वे बिना भोजन और पानी के उपवास करते हैं। इस प्रकार तीस रोज़े रखने के बाद रमज़ान का महीना समाप्त होते ही वे अल्लाह के दरबार में शुकराने की नमाज़ अदा करते एव ईदुल फ़ितर का त्यौहार मनाते हैं। इस प्रकार ईद का त्यौहार इस बात की ख़ुशी का त्योहार है कि इन्सान अपने अल्लाह के हुक्म पर चलते हुए उसके आदेशों का पालन करें तथा अपना जीवन नेक रास्ते में चलकर व्यतीत करें। हजरत मुहम्मद के जमाने में जब रमज़ान का महीना आता था तो मुसलमान उसका स्वागत इस तरह करते थे जैसे किसी बहुत बड़े मेहमान का स्वागत होता है। इसके बाद पूरा महीना नेक काम करने तथा ख़ुदा की इबादत करने में व्यतीत किया जाता था। इस प्रकार आज़माइश का एक महीना बिताने के बाद मुसलमान ईद की ख़ुशी का त्योहार मनाते थे।
रोज़ों में लोग स्वयं भूखे और प्यासे रहकर दूसरे भूखे और प्यासे व्यक्तियों के दुःख दर्द का अनुभव करते हैं जिससे उनमें अपने दुखी भाइयों के प्रति दया और सहानुभूति की भावना उत्पन्न होती है। वास्तव में रोज़े रखने से न केवल इन्सान के शरीर की शुद्धि होती है वरन् उसकी आत्मा भी पवित्र होती है। उसमें धैर्य एवं दृढ़ता आती है तथा नेक रास्ते पर चलने एवं पाक साफ़ जीवन व्यतीत करने की आदत पड़ती है।

इसी महीने में एक रात ऐसी होती है जिसे “लैलत-उल-क़द्र” या “शब-ए-क़द्र” कहते हैं। इसके संबंध में कहा गया है कि यह पिछले पैगम्बरों की हज़ारों महीनों से अफ़ज़ल रात है, कारण कि इन महीनों के अन्दर दुनिया को जो कुछ वरदान स्वरूप दिया गया था वह सब कुछ केवल इसी रात के अन्दर दे दिया गया है। इस रात मुसलमान रात भर क़ुरान शरीफ़ पढ़ते व इबादत करते हैं।
हजरत मुहम्मद ने बताया था कि ईद के दिन अल्लाह ताला फ़रिश्तों से कहता है, “ऐ फ़रिश्तों, उस मज़दूर की मज़दूरी क्या हो सकती है जिसने अपना पूरा काम कर दिया ?” फरिश्ते कहते हैं, “उसे पूरा-पूरा मिहनताना दे दिया जाय।” अल्लाह ताला कहता है ” तुम लोग गवाह रहना, मैंने उन्हें बख़्श दिया।” इस प्रकार रमज़ान के महीने भर जो सच्चाई और ईमानदारी से रोज़े रखते हैं और नेक काम करते हैं, ख़ुदाबंद करीम उनके सभी गुनाहों को माफ़ कर उन्हें बख़्श देता है।
ईद का दिन नमाज़-ए-ईद से शुरू होता है। उस दिन ख़ुशी में पाँच नमाज़ों की जगह छह नमाज़ें पढ़ी जाती हैं। मुसलमान अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक अच्छे कपड़े पहिनते, इत्र लगाते तथा कुछ मीठा बनाकर खाते हैं।

अपने सभी भेदभाव एवं पुरानी रंजिश को भूलकर वे एक दूसरे से गले मिलते और ख़ुशी का इज़हार करते हैं। अपनी कमाई में से फ़ितरे के रूप में कुछ हिस्सा निकाल कर वे गरीबों में बाँटते हैं ताकि वे भी उस दिन भूखे न रहें और ईद की ख़ुशी मना सकें।
इस प्रकार ईद का त्यौहार यद्यपि मुसलमानों का धार्मिक त्यौहार है, किन्तु उसका पैगाम संसार के सभी मानवों के लिये है। यह केवल एक जाति की ख़ुशी नहीं वरन सबकी ख़ुशी है, कारण कि इस्लाम मनुष्य-मनुष्य में कोई अंतर नहीं करता। ईद के पैगाम में अल्लाह की इबादत है, उसका शुक्रिया है तथा भाईचारे का सुन्दर पाठ भी है। दूसरे शब्दों में यह संसार के लिये मानवता का पैगाम है।
ईद का त्यौहार यद्यपि मुसलमानों का धार्मिक त्यौहार है किन्तु उसका संदेश सारे विश्व की मानव जाति के लिये एक सरीखा है। ईद केवल एक जाति विशेष की ख़ुशी का प्रतीक नहीं, वरन् सबकी ख़ुशी के लिये है। कारण इस्लाम धर्म मानव-मानव के बीच कोई अंतर नहीं रखता। उनकी शिक्षा है कि दूसरों को खिलाकर खाओ और दूसरों को पहनाकर पहनो। तो आइये इस दृष्टि से हम देखें कि विश्व के विभिन्न देशों में ईद का त्यौहार मुसलमान किस तरह मनाते हैं।


अफ़ग़ानिस्तान
अफ़ग़ानिस्तान में ईद का चाँद दिखने का ऐलान रेडियो द्वारा किया जाता है। वहाँ ईद का कार्यक्रम क़ुरान मजीद की तिलावत, पश्तों में हदीसों के अनुवाद और फारसी में हम्द के आधार पर बनाया जाता है। ईद की रात लोग अपने घरों में जागकर तस्बी, नमाज़ इत्यादि पढ़ने अथवा बाज़ार से सामान इत्यादि खरीदने में बिता देते हैं। ईद की सबसे बड़ी नमाज़ काबुल की जामा ईदगाह में होती है जहाँ अफ़ग़ानिस्तान के शाह शाही खानदान के लोगों के साथ नमाज़ पढ़ने आते हैं। उस मस्जिद में साठ हज़ार से अधिक लोग जमा होते हैं। ईद के दिन घरों में ईद का विशेष व्यंजन ” खिचड़ी – कूत” पकाते हैं जो दही और खिचड़ी का एक विशेष प्रकार का भोजन है। कई घरों में पुलाव, बिरयानी और शीरिनी से मेहमानों का स्वागत होता है। अफ़ग़ानिस्तान में ईदी देने की भी प्रथा है। ईद के दिन दावतें होती हैं जिनमें मित्रों और रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता है। ये दावतें रात तक चलती रहती हैं।

ईरान
ईरान में ईद का ऐलान शाम की ख़बरों में कर दिया जाता है। ईद की रात में ‘लाला-जार’ रयाबाने फ़िरदौसी तथा “बाजार-ए बुजुर्ग” के बाज़ारों में लेन-देन चलता रहता है। ईद की सुबह लोग साफ़ सुथरे कपड़े पहन कर किसी मस्जिद में चले जाते हैं जहाँ वे ईद की नमाज़ पढ़ते हैं। पूरे देश में ऐसी मस्जिदों की संख्या दस से अधिक नहीं है। ईरान में ईद की सबसे बड़ी नमाज़ मशहद में हजरत इमाम रज़ा की मस्जिद-ए-हरम में होती है जहाँ एक लाख से भी अधिक लोग नमाज़ पढ़ते हैं। दूसरी नमाज़ तेहरान में मस्जिद-ए-शाह अब्दुल अज़ीम में होती है जहाँ ईरान के प्रधान मंत्री और दूसरे लोग नमाज़ पढ़ते हैं। शाह ईरान और शाही खानदान के दूसरे लोग काख-ए-मरमर की मस्जिद में नमाज़ अदा करते हैं। ईद की नमाज़ के बाद लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और ईदी बाँटते हैं। उस दिन सभी शासकीय भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज लहराये जाते हैं। रात में महल पर ख़ूब रोशनी की जाती है। ईद की नमाज़ के बाद सबेरे लगभग १० बजे शंहशाह के महल में सलाम की रस्म होती है जिसमें शंहशाह हर एक सलाम करने वाले को एक ईरानी अशर्फ़ी बतौर तोहफ़े देते हैं।

ईराक
ईराक में ईद का चाँद देखने का ऐलान रेडियो पर होता है। उस रात रेडियो और टेलीविजन पर विशेष कार्यक्रमों का प्रसार होता है जिनमें विशेषकर ख़ुशी के गीत गाये जाते हैं। ये गाने तवाशेख कहलाते हैं। ईद की सबसे बड़ी नमाज़ काज़मीन की जामा मस्जिद में होती है और दूसरी बगदाद की मसजिदुल इमामुल आजम होती है। उसके पश्चात ही गरीबों को फ़ितरा बाँटा जाता है और उन्हें कपड़े इत्यादि भी दिये जाते हैं। उस दिन गरीबों के लिये एक विशेष लंगर का प्रबन्ध भी होता है।
ईद की नमाज़ के बाद ईराक के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री रेडियो से भाषण देते हैं। वे अपने भाषणों में आपसी मेल मिलाप तथा नैतिकता के विषयों पर जोर देते हैं। ईराक में ईद की छुट्टी तीन दिन तक रहती है। ईराक के लोग ईद के दिन अपनी पुरानी शत्रुता को भूलकर नई मित्रता का शुभारम्भ करते हैं। इसी कारण वे ईद के दिन पिस्ता और इलायची से बना एक अत्यंत स्वादिष्ट व्यंजन तैयार कर मित्रों को आमंत्रित करते हैं। ईराक के लोग ईद के दिन घरों में बैठे नहीं रहते बल्कि घर
के बाहर होटलों, कहवा खानों और मैदानों में इकट्ठा होकर अपनी ख़ुशी प्रकट करते हैं।

सऊदी अरब
अरब में ईद के चाँद का ऐलान तोपों की आवाज़ों से किया जाता है। वैसे चाँद दिखने का ऐलान रेडियो से भी किया जाता है और उसके बाद ही तिलावत-ए-क़ुरान और ईद की तकबीरें सुनाई जाती हैं। ईद की रात, बच्चे टोलियाँ बनाकर गलियों में निकल जाते हैं और क़लमा-ए-तय्यब से पूरे वातावरण को गुंजायमान कर देते हैं। मक्का मदीना और रियाज़ में ईद का ऐलान सूर्योदय से पूर्व तोपों की गरज से किया जाता है और फिर अजान के बाद क़लमा-ए-तय्यब और ईद की तकबीरें पढ़ी जाती हैं। फ़जर की नमाज़ के बाद लोग अपने घर आ जाते हैं और खजूरों से बनाया हुआ एक विशेष व्यंजन खाकर फिर मसजिदों में चले जाते हैं। फ़जर और ईद की नमाज़ के बीच केवल आधे घंटे का अन्तर होता है। नमाज़ के बाद रियाज की मस्जिद से सऊदी अरब के शाह और मस्जिद-ए-नबवी से थल सेनाध्यक्ष के भाषण होते हैं। इनमें आपसी मेल मिलाप और प्रेम भाव पर अत्यधिक जोर दिया जाता है। ईद की नमाज़ के बाद बच्चों को ईदी दी जाती है। और वे खिलौने या अन्य चीज़ें ख़रीदने के लिये बाज़ार चले जाते हैं। सऊदी अरब में फ़ितरे की रकम का बहुत ही अच्छा प्रबन्ध है। लोग सरकारी खजाने में फ़ितरे की रकम जमा करा देते हैं जिसे एक विभाग के अन्तर्गत गरीबों की भलाई और अनाथ बच्चों की देखभाल पर खर्च किया जाता है।

भारतवर्ष
इसी प्रकार भारतवर्ष में भी लोग ईद का चाँद देखने के लिये बड़े बेचैन रहते हैं। यहाँ ईद का चाँद दिखते ही उसका ऐलान रेडियो द्वारा किया जाता है। ईद का चाँद देखने के बाद मुसलमान ईद की तैयारी में जुट जाते हैं। भारत के बड़े-बड़े शहरों में तो आधी रात तक बाजारों में ख़रीदी चलती रहती है। ईद की सुबह हर मुसलमान ईद की नमाज़ अदा करने से पहले सदक़ा-ए- फ़ित्र अदा कर देता है। उसका उद्देश्य केवल यह होता है कि उनके गरीब भाई-बहिन भी उनके साथ त्योहार की ख़ुशी मना सकें। नमाज़ को जाने से पहले अपने-अपने घरों में हर मुसलमान दूध, खजूर और सूखे मेवे से बनाया हुआ “शीर खुरमा” खाते हैं। नमाज़ अदा करने के बाद वे एक दूसरे से गले मिलते तथा अपनी ख़ुशी का इज़हार करते हैं। ईद के दिन वे अपनी पुरानी दुश्मनी को भूलकर हर एक की तरफ नई दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं।
ईद के दिन मुसलमान अमीर-गरीब, बड़े-छोटे तथा जाति-पाति के सभी भेदभाव भूलकर अपने इष्ट मित्रों को घर पर आमंत्रित करते एवं मीठी ईद मनाते हैं। यहाँ यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि भारतीय गणतंत्र में जिस प्रकार समता, स्वतंत्रता, एवं बंधुता के साथ मुसलमान अपने सभी देशवासियों के साथ ईद की ख़ुशी मनाते हैं, वैसी सम्भवतः अन्य किसी भी मुसलिम देश में नहीं मनाई जाती होगी।

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