प्रश्न : लोमहर्षक शब्द की व्युत्पत्ति क्या है? क्या इसका अर्थ — डरावना है या रोम  रोम को खुशियों से भर देने वाला? (डॉ. प्रशांत पुरोहित, इंग्लैंड, यूके)

उत्तर:

लोमहर्षक शब्द संस्कृत के लोमहर्षण से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ है रोंगटों का खड़े होना। यह शब्द लोम (रोम) अर्थात शरीर के कोमल बाल और हर्षण (खुश होना, खड़ा होना, उत्तेजित होना) के योग से बना है। शरीर के लोम का ठंड, भय, आनंद, क्रोध या क्रूरता आदि के कारण खड़े होना लोमहर्षण है।

महाभारत में उक्ति है -तस्मिन् महाभये घोरे तुमुले लोमहर्षणे। ववर्षुः शरजालानि क्षत्रिया युद्धदुर्म्मदाः (युद्ध में उत्साहित क्षत्रियों ने उस भयानक कोलाहल के समय बाणों की वर्षा की)। इससे स्पष्ट है कि लोमहर्षण का प्रयोग भय या विभीषिका में किया जाता था।

इसी तरह हिन्दी  में लोमहर्षक शब्द दोनों अर्थों में इस्तेमाल हो सकता है। हर्ष शब्द दिख रहा है इस वजह से इसे सिर्फ़ खुशी या सुखदायक नहीं माना जा सकता। अंग्रेज़ी में goosebumps भी दोनों अर्थों में प्रयोग होता है।

महाभारत में लोमहर्षण नाम के एक ऋषि भी हुए जो व्यास मुनि के शिष्य थे। उन्हे सूत पुत्र कहा गया है, अर्थात वे ब्राह्मण नहीं थे। उनके नाम से लगता है कि लोमहर्षण (अपनी बोली से प्रसन्न करने वाला) नाम सकारात्मक था। वे पुराणों के ज्ञाता थे इसलिए उन्हें पुराणार्थ विशारद भी कहा गया है।

हिन्दी में लोमहर्षक शब्द बहुधा भयानक या दुखदायक घटना के वर्णन में प्रयोग होता है। परन्तु लोमहर्षक शब्द सकारात्मक रूप (प्रसन्नता या उत्तेजना के अर्थ में) में भी हिन्दी में इस्तेमाल होता है। पढ़ें अज्ञेय रचित कहानी ‘अमरवल्लरी’ और अशोक वाजपेयी की रचना ‘पाव भर जीरे में ब्रह्मभोज’

अमरवल्लरी का अंश
‘पाव भर जीरे में ब्रह्मभोज’ का अंश

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