
आज सुबह-सुबह संतरे चखते हुए, उन्होंने बताया कि सोवियत रूस और उसके साम्यवादी (कम्युनिस्ट) राजमंडल में शामिल मंगोलिया, पूर्वी जर्मनी, बल्गारिया, पोलैंड, रोमानिया, हंगरी जैसे देशों में संतरा, आम,केला, अनानास जैसे फल विलासिता से जुड़े फल माने जाते थे। स्कूल की क्रिसमस की छुट्टियों से ठीक पहले मंगोलिया की कम्युनिस्ट सरकार की तरफ़ से हर बच्चे को कुछ स्थानीय मिठाइयों के साथ एक संतरा भी मिलता था। यह उन बच्चों का साल का पहला और आख़िरी संतरा होता था। जब आप संतरे के छिलके छीलते हैं तो उससे एक भीनी-भीनी -सी सुगंध निकलती है। उन्होंने बताया कि वे संतरों के छिल्कों को फेंकती नहीं थीं। उन्हें वे कमरों को गरम रखने वाले हीटरों पर रख देती थीं, ताकि उनकी भीनी-भीनी ख़ुशबू सारे कमरे में कई दिनों तक फैलती रहे। यह उनके लिए एक विशेष ख़ुशबू थी। शायद उस ज़माने में पैदा हुए लोगों को यह ख़ुशबू आज भी उन दिनों की याद दिला देती हो।
कुछ साल पहले मेरी एक विद्यार्थी क्रिस्टिन जो एकीकृत जर्मनी से हिन्दी साहित्य पढ़ने के लिए यहाँ आई थीं। उन्होंने एक किस्सा बताया था कि कैसे उनकी दादी को पूर्वी जर्मनी (जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य) की पुलिस ने कुछ केले और संतरे पश्चिमी जर्मनी से अवैध रूप से लाने के ज़ुर्म में गिरफ़्तार कर लिया था। पुलिस ने 24 घंटे बाद उन्हें जाने दिया लेकिन उनके फल वापिस नहीं दिए। यह कहानी क्रिस्टिन को उनकी माँ ने सुनाई थी। शायद यही कारण है कि आज भी ऐसे उष्णकटिबंधीय फल (गरम देशों में उगने वाले फल) देखकर उनकी माँ की आँखों में आँसू आ जाते हैं।
मैं सोचता हूँ कि भारत में पैदा हुए लोग बहुत ख़ुशनसीब हैं कि किसी क़िस्म के फल खाने के लिये उन्हें जेल नहीं जाना पड़ता। संतरा, आम , केला , नारियल आदि फल भारत में आमतौर पर आसानी से मिलने वाले फल हैं। मेरे पिताजी बताते थे कि एक बार हमारे गाँव ‘कायमनगर’ में आम की इतनी पैदावार हुई कि भीख माँगकर गुज़ारा करने वालों ने भी भीख में आम लेने से इनक़ार कर दिया था। कभी-कभी केले तो निहायत सस्ते हो जाते थे कि दिल्ली में दूसरे कस्बों से आकर पढ़ने वाले हमारे जैसे विद्यार्थी केले खाकर ही दिनभर का काम निपटा लेते थे। जब पहली बार ट्रेन से नई दिल्ली स्टेशन पर टपका था, तो बड़े भाई साहब ने वहीं स्टेशन के बाहर ठेले पर केले बेचने वाले से पाँच-छे केले दिलवाए थे। और कहा था, ”खा लो आज का लंच यही है”। मैंने पहली बार देखा कि केले बेचनेवाला बड़ी सफ़ाई से केले में चीरा लगाकर बीच में काला नमक लगाकर दे रहा था। शायद केले का यह रूप दिल्ली महानगर के बाशिंदों के लिये ही बना था।

ऐसा नहीं है कि फलों की सुगंध का मेरे लिये कोई मायना नहीं है। मेरा अनुभव कि आम की बगिया में जब मंजर या बौर कह लीजिए, आ जाते हैं , तो मेरे हृदय की धड़कने अपने-आप तेज़ हो जाती है। इसका सीधा-सादा कारण यह था कि जब आम के पेड़ों में मंजर आते हैं तो आम के छोटे-छोटे फलों की सुगंध हवा में तैरने लगती है। और यह स्कूल की वार्षिक परीक्षाओं का समय होता था। तो इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि इधर आम के पेड़ों में मंजर आए और उधर मेरे मन में परीक्षाओं का डर हावी हो गया।
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