एक बार किसी मौलवी साहब ने मस्जिद में गुनाह[1] पर तक़रीर[2] देते हुए बताया कि गुनाहगारों को दोज़ख़ [3] में कैसी-कैसी सज़ाएँ दी जाती हैं। उन्होंने दोज़ख़ का बहुत हौलनाक[4] मंज़र[5] पेश किया। तक़रीर सुनने वालों में एक ग़रीब किसान भी था। मौलवी साहब ने देखा कि वह ज़ार-ज़ार[6] रो रहा है।
“अपने गुनाहों पर रो रहे हो, क्यों ?” मौलवी साहब ने पूछा। सुनने वालों पर अपनी तक़रीर का असर देखकर उन्हें बहुत ख़ुशी हुई। “मेरे अल्फ़ाज़[7] सीधे दिल में उतर जाते हैं, है न ? दोज़ख़ की सज़ाओं के बारे में जानकर तुम्हें अपने गुनाह याद आ गए। क्यों यही बात है न ?”
ग़रीब किसान ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा, “नहीं, नहीं जनाब, मैं अपने गुनाहों के बारे में नहीं सोच रहा था। मैं तो अपने बूढ़े बकरे ‘अकड़ू’ के बारे में सोच रहा था जो पिछले साल मर गया। वह हमें छोड़कर चला गया। उस बकरे की दाढ़ी हूबहू आपकी दाढ़ी जैसी थी। इतनी मिलती-जुलती दो दाढ़ियाँ मैंने कभी नहीं देखी। आपकी दाढ़ी देखकर मुझे उसकी याद आ गई।” कहते-कहते वह फिर रो पड़ा।
यह सुनकर गाँववालों ने ऐसा ज़ोरदार ठहाका लगाया कि लगा मस्जिद की छत उड़ जाएगी। बेचारे मौलवी साहब अपनी डायरी के पन्ने पलटने लगे।
[1] अपराध , पाप
[2] भाषण
[3] नरक / नर्क
[4] भयंकर
[5] दृश्य
[6] बहुत ज़्यादा
[7] शब्द