buraq

दिल्ली के मेहरौली में मौजूद शम्सी तालाब यानी हौज़-ए-शम्सी की कहानी कहती है कि इस हौज़ का निर्माण ग़ुलाम वंश के सुल्तान शम्स-उद-दीन इल्तुत्मिश ने 1230 AD में करवाया था। मान्यता यह है कि सुल्तान को रात में सपना आया कि हज़रत मुहम्मद अपनी पंखों वाली घोड़ी ‘बुराक़’ पर सवार होकर उनसे मिलने दिल्ली आए थे, और उन्होंने सुल्तान को यह आदेश दिया कि जहाँ बुराक़ ने अपने खुरों से निशान बनाया हो, वहाँ एक हौज़ बनाया जाए। इस निशान के पास ही सुल्तान इल्तुत्मिश ने हौज़-ए-शम्सी का निर्माण करवाया। इसका सीधा असर यह हुआ कि मेहरौली की पानी की समस्या हल हुई।

तालाब के पानी को कई सालों तक करिश्माई माना जाता था जिसका उल्लेख 14वीं सदी के मशहूर अरब यात्री इब्न बतुता ने किया है। इब्न बतुता लिखते हैं कि दिल्ली के लोग इस तालाब के पानी को करिश्माई मानते थे और कैसे छोटी-छोटी नावें श्रद्धालुओं को तालाब के मध्य में लाल पत्थर से बने चबूतरे तक ले जाती थीं। इस्लामिक लोक मान्यताओं के अनुसार बुराक़ नामक यह जीव सफ़ेद रंग का है, इसके पंख हैं और यह उड़ सकती है। बुराक़ का मूल वर्णन मक्का से येरुशलम तक मुहम्मद साहब के रात के सफ़र (इस्रा) की कहानी में है, जिसमें यह बताया गया है कि उन्होंने किस तरह इन नगरों के मध्य सफ़र को एक ही रात में पूरा कर लिया था।


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