Beautiful Jharkhand by W. Raja
Photo credit – Wasim Raja

(कल मेरे पिताजी को गुज़रे ठीक 4 महीने बीत जाएँगे। आज विश्व पिता दिवस है। अपने पिता को याद करते हुए मुझे निदा फ़ाज़ली साहब (1938 – 2016) की यह रचना याद आई। इन अशआरों को लिखते हुए निदा फ़ाज़ली साहब ने जो जज़्बात महसूस किए होंगे, उनका अहसास अब मुझे भी है। )

तुम्हारी क़ब्र पर
मैं फ़ातिहा पढ़ने नहीं आया

मुझे मालूम था
तुम मर नहीं सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची ख़बर जिसने उड़ाई थी
वो झूठा था
वो तुम कब थे
कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से हिल के टूटा था
मेरी आँखें 
तुम्हारे मंज़रों में क़ैद हैं अब तक
मैं जो भी देखता हूँ
सोचता हूँ
वो – वही है
जो तुम्हारी नेकनामी और बदनामी की दुनिया थी
कहीं कुछ भी नहीं बदला
तुम्हारे हाथ
मेरी उँगलियों में साँस लेते हैं
मैं लिखने के लिए
जब भी कलम काग़ज़ उठाता हूँ
तुम्हें बैठा हुआ अपनी ही कुर्सी में पाता हूँ
बदन में मेरे जितना भी लहू है 
वो तुम्हारी 
लग़्ज़िशों नाकामियों के साथ बहता है
मेरी आवाज़ में छुप कर
तुम्हारा ज़ेहन रहता है
मेरी बीमारियों में तुम
मेरी लाचारियों में तुम
तुम्हारी क़ब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है
वो झूठा है
तुम्हारी क़ब्र में मैं दफ़्न हूँ
तुम मुझ में ज़िन्दा हो
कभी फ़ुर्सत मिले तो फ़ातिहा पढ़ने चले आना।