अभी कुछ दिन हुए मैंने एक चेक-स्लोवाक भाषा में बनी फ़िल्म देखी – Obchod na Korze यानी अंग्रेज़ी में ‘द शॉप ऑन द मेन स्ट्रीट (The Shop on the Main Street)’। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान स्लोवाकिया के एक छोटे-से शहर के जीवन पर आधारित यह फ़िल्म ऑस्कर जीतने वाली पहली चेक और स्लोवाक फ़िल्म थी। इस श्वेत-श्याम फ़िल्म की कहानी वर्ष 1942 की है जब स्लोवाकिया पर नात्सी जर्मनी की कठपुतली और तानाशाही सरकार का शासन था। फ़िल्म का मुख्य किरदार टोनो ब्रत्को एक सीधा-सादा बढ़ई है। ब्रत्को को उसका फ़ासीवादी साढ़ू जो कि एक पुलिस अधिकारी है, चालबाज़ी से एक बूढ़ी और ऊँचा सुनने वाली यहूदी महिला श्रीमती लाउटमान की बटनों की दूकान का आर्य स्वामी बनवा देता है। ज्ञात हो कि नात्सी शासन के दौरान जर्मनी, पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया, ऑस्ट्रिया समेत यूरोप के कई देशों में एक क़ानून के तहत यहूदी व्यापारिक प्रतिष्ठानों का मलिकाना हक़ स्थानीय (तथाकथित) आर्य समुदाय के चुने हुए लोगों को सौंप दिया गया था। इसका मतलब था कि नात्सी शासन के क़ानून के मुताबिक हर यहूदी दूकान मालिक के लिए एक आर्य स्वामी का होना अनिवार्य था। टोनो एक जिंदादिल इंसान है जो उसके देश में हो रही फ़ासीवादी क्रांति से सहमत नहीं है। टोनो का साढ़ू जब उसके घर महँगी शराब लिए रात के खाने पर आता है, तो टोनो शराब के नशे में अडोल्फ़ हिटलर की नकलकर उसका मखौल उड़ाता है। फ़िल्म का यह दृश्य अपने-आप में अनोखा –
फ़िल्म में शहर की मुख्य सड़क पर विधवा महिला श्रीमती लाउटमान की बटन व लेस की एक पुरानी दूकान है। यह बात उस समय से कुछ ही पहले की है जब नात्सी शासन द्वारा यहूदी मूल के लोगों को यूरोप भर से जबरन यातना शिविरों में भेजना शुरू हुआ था। भोलाभोला टोनो जब पहली बार श्रीमती लाउटमान की दुकान पर अपना कब्जा लेने आता है तो वृद्ध महिला पहले उसे ग्राहक समझती, फिर टैक्स जमा करने वाला और अंत में एक बेरोज़गार आदमी। इस दौरान टोनो उन्हें समझाने कि कई दफ़ा कोशिश करता है कि वह दुकान का आर्य स्वामी। पर बुढ़िया समझे तब तो बात आगे बढ़े। अगले दिन से टोनो श्रीमती लाउटमान के पुराने जर्जर हो चुके फ़र्नीचर को दुरुस्त करने में लग जाता है। दरअसल फ़िल्म उस मानवीय रिश्ते की दास्तान है जो टोनो ब्रत्को और श्रीमती लाउटमान के मध्य विकसित होता है। मानवीय संबंध किस प्रकार इन अमानवीय, क्रूर और कठिन परिस्थितियों में विकसित होते हैं। एक सीधा-सादा आदमी अपने आप को कैसे इन परिस्थितियों में अपने-आपको बेबस पाता है, यह आप इस मर्मस्पर्शी फ़िल्म में देख सकते हैं।
फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं – इदा कमिन्स्का (श्रीमती लाउटमान), जोज़ेफ़ क्रोनर (टोनो ब्रत्को) और हाना सिल्व्कोवा ( टोनो की पत्नी)।
फ़िल्म के निर्देशक हैं – यान क़ादर