कभी – कभी जाने-अनजाने हम स्वयं अपने कौशलों (skills) को नहीं पहचानते हैं। फलों के राजा आम को काटने को ही लीजिए। बचपन से आम की ख़ुराक पर बड़े हुए हम जैसे लोगों के लिए आम काटना तो बाँए हाथ का खेल हैं, लेकिन उन लोगों के लिए जिन्होंने आम कभी खाया नहीं है, आम को सलीके से काटना और खाना उसी तरह का पेचीदा काम है जिस तरह से मेरे लिए एवोकैडो को पहली बार खाना था। आम काटने और बिना आम काटे खाने का गुर मैंने अपने पिताजी से सीखा है। आम खाना एक कला है जो ही गाहे-बगाहे नहीं आ जाती है। सीखना पड़ता है। देखना पड़ता है। पहले आम को डेढ़-दो घंटे पानी में डालिए ताकि आम की तासीर ठंडी हो (आम गर्मी के मौसम का फल और अंदर से गरम होता है)। फिर आम को पानी से बाहर निकालिए। सबसे पहले आम के फलों के सिरे से निकले रस यानी चोप को निकालना ज़रूरी है। इसके लिए आप चाहें तो सिरे को थोड़ा सा काटें या हाथ से दबा-दबा कर चोप को बाहर निकाल दें। जो बच्चे या वयस्क लोग इस चोप को बिना निकाले आम खा डालते हैं, उनके मुँह/होठों के घाव इसकी गवाही ख़ुद-ब-ख़ुद देते हैं। अच्छा, अब आम को सीधा लिटाते हुए, गुठली (बीज) की दोनों तरफ, दोनों तरफ़ बराबर काटिए। इससे आपको मिलेंगे आम के तीन हिस्से। जिन्हे अब आप आसानी से खा सकते हैं। ये सब मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि दो दिन पहले एक आम के नाम पर कलंक का घर पर आना हुआ। नाम था – नन्द और ठिकाना – ब्रज़ील। इतना बेकार आम मुद्दतों बाद खाया। दिखने में लाल- सुन्दर था, लेकिन स्वाद जैसे इमली का सौतेला भाई हो।

 


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