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अब स्वर्ग में रहने वाली मेरी माँ श्रीमती विद्या तिवारी के लिए जिन्होंने हमें अपने प्यार और दुलार से सींच कर बड़ा किया । ख़ुद हज़ारों कष्ट झेलते हुए हमें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। ममता, आस्था और धर्मपरायणता की साक्षात मूर्ति थी मेरी माँ। हे भगवान आपसे यही प्रार्थना है कि यदि मेरा अगला जन्म हो, तो मुझे इसी माँ की कोख से जन्म दीजिएगा ।

“तू प्यार का सागर है

तेरी इक बूँद के प्यासे हम
लौटा जो दिया तूने, चले जायेंगे जहाँ से हम
तू प्यार का सागर है …

घायल मन का, पागल पंछी उड़ने को बेक़रार
पंख हैं कोमल, आँख है धुँधली, जाना है सागर पार
जाना है सागर पार
अब तू ही इसे समझा, राह भूले थे कहाँ से हम
तू प्यार का सागर है …

इधर झूमती गाये ज़िंदगी, उधर है मौत खड़ी
कोई क्या जाने कहाँ है सीमा, उलझन आन पड़ी
उलझन आन पड़ी
कानों में ज़रा कह दे, कि आये कौन दिशा से हम
तू प्यार का सागर है …”

फ़िल्म  ’सीमा’ का यह गीत कवि शैलेन्द्र ने लिखा है, और मन्ना डे साहब ने अपनी आवाज़ से इसे प्राण दिए हैं।

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