(कपिलदेव नाम के एक प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं)
तारीख़ : अगस्त 2012
जगह: इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, नई दिल्ली
ठिकाना: वेटिंग हॉल, टर्मिनल – 3
मेरी बगल वाली सीटों पर दो सज्जन बैठे हैं।

मैं: भाई साहब आप कहाँ जा रहे हैं?
पहला मुसाफ़िर: हम लोग सऊदी जा रहे हैं? देर रात में फ़्लाइट है।
मैं: चलिए आप लोग तब तक आराम कर सकते हैं। वहाँ काम करते हैं क्या?

पहला मुसाफ़िर: हाँ वहीं काम करते हैं। दो महीने की छुट्टी पर आये थे। फिर वापस जा रहे हैं। आप कहाँ जा रहे हैं?
मैं: मैं भी काम से बाहर जा रहा हूँ। आप लोगों की ईद तब तो वहीं मनेगी।
पहला मुसाफिर : हाँ छुट्टी खत्म हो गया है। इसलिए जाना पड़ेगा।
मैं: रुक नहीं सकते?
पहला मुसाफिर: नहीं रुक सकते। अगर रुके तो कपिल गुस्सा हो जाएगा।
मैं: कपिल गुस्सा हो जाएगा?…ये कपिल कौन है?
पहला मुसाफिर: कपिल याने मालिक अरबी में। हर आदमी जो वहाँ काम करने जाता है। उसका एक कपिल होता है। महीने में कम से कम एक बार उससे मिलना होता है। वहाँ पर वहीं आपका बाप होता है। कोई मामला बनता है तो कपिल ही आपका जवाबदेह होगा।
मैं: मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं जानता।
पहला मुसाफिर: कपिल वह आदमी है जिसके नाम पर हम लोग काम करने अरब जाते हैं। जैसे उसका नाम इस्तेमाल करते हैं।
मैं: ये कपिल कैसे लोग होते हैं।
दूसरा मुसाफिर: कोई भी सउदी कपिल हो सकता है। कुछ लोगों का यह धंधा है। अपने नाम पर लोगों को बुलाते हैं। और वह आदमी दूसरी जगह काम करता है। एक आदमी के लिए रेट 3-4 लाख रुपए हो सकता है।
मैं: आपका भी कपिल है?
दूसरा मुसाफिर: सबका कपिल होता है। मेरा भी है।
मैं: कपिल लोग कैसा बर्ताव करते हैं।
पहला मुसाफिर: अरे कपिल तो पीट भी सकता है। उसका कहा मानिए नहीं तो थप्पड़ मारेगा।
मैं: थप्पड़ क्यूँ मारेगा? ऐसे ही?
दूसरा मुसाफिर: मान लीजिए वो आपको अरबी में कहेगा दाएँ चलो, और आप बाएँ जाएंगे। तो वो गुस्सा होकर थप्पड़ भी मार सकता है।
मैं: वो लोग गाली भी देते हैं क्या?
पहला मुसाफिर: हाँ गाली भी देते हैं। पर अरबी में देते हैं। इसलिए पता नहीं चलता।

मैं: हा हा हा। आप अपने कपिल के साथ रहते हैं?
पहला मुसाफिर: हाँ पहले रहता था। लेकिन कपिल बहुत परेशान करता था। इसलिए मैं उसका पैसा उसको हर महीने दे देता हूँ और अलग रहता हूँ।
मैं: यानी अलग रहने के लिए हर्जाना देना होता है। कैसे परेशान करता था?
दूसरा मुसाफिर: हाँ देना होता है।
पहला मुसाफिर: अब देखिए रात में उठाकर कहेगा। वहाँ चलो।
मैं: आप अपने घर में कौन सी ज़बान बोलते हैं?
पहला मुसाफिर: यही हिंदी या भोजपुरी उर्दू।
मैं: आप कहाँ रहते हैं?
दूसरा मुसाफिर: मैं अपने कपिल के साथ रहता हूँ। उसके यहाँ खाना-चाय-नाश्ता बनाता हूँ। मेरा कपिल अच्छा आदमी है।
मैं: घर पर कोई दिक्कत नहीं होती?
दूसरा मुसाफिर: नहीं कुछ चीज़े हैं जो सीखनी पड़ती है।
मैं: जैसे?
दूसरा मुसाफिर: जैसे अगर कपिल की बीवी या कोई और औरत आ रही है तो कपिल बता देता है कि नज़रे उधर कर लो। और हम लोग नज़र दूसरी तरफ कर लेते हैं। यह समझना होता है।
मैं: आप अपने कपिल के लिए हिन्दुस्तानी खाना बनाते है?
दूसरा मुसाफिर: नहीं-नहीं वो लोग इतना मसाला नहीं खाते है। बस हल्दी, जीरा और केसर का इस्तेमाल करते हैं। सउदी लोगों को हमारी बिरयानी और दम गोश्त बहुत पसंद है। पूरे दिन सउदी लोग कहवा पीते हैं। अकेला एक सउदी पूरा मुर्गा हड़प जाता है। बगैर मसाला या सालन के। मैं तो ऐसे गोश्त खा ही नहीं सकता। इसलिए मैं अपने लिए अलग से सब्जी बनाता हूँ।
मैं: कहवा क्या होता है?
दूसरा मुसाफिर: हाँ कहवा मतलब अरबी में हमारे यहाँ की लाल बिना दूध वाली चाय। इसमें केसर, चाय की पत्ती, इलायची और बादाम डालते हैं। दूध वाली चाय नहीं पीते हैं।
मैं: आप कहाँ खाना खाते हैं?
पहला मुसाफिर: हम अपनी फैक्ट्री में खाना खाते हैं। दाल-चावल-रोटी-सब्जी मिलता है।
मैं: यह तो बढ़िया बात है।
दूसरा मुसाफिर: सउदी कपिल आजकल बहुत होशियार होते जा रहे हैं। उनको पता चल गया है कि यहाँ के एक रियाल के भारत में 15 रुपए मिलते हैं। इसलिए अब उतना पैसा नहीं है।
मैं: आपको कैसा लगता है वहाँ पर?
पहला मुसाफिर: अपने देस में काम मिले तो कौन वहाँ काम करने जाएगा। हम तो कभी नहीं जाएंगे।
मैं: लीजिए शाम के साढ़े- छे बज गए। आपके रोज़ा खोलने का वक्त हो गया।
दूसरा मुसाफिर: हाँ- हाँ। आप यह केला लीजिए ना।
पहला मुसाफिर: यह बिस्कुट भी लीजिए।
मैं: अरे नहीं नहीं आप लोग खाइए। आप लोगों ने सुबह से कुछ नहीं खाया-पीया है।
दूसरा मुसाफिर: पहले आप लीजिए।
मैं: ठीक है। शुक्रिया। 

{बाद में चेक किया तो पता चला कपिल ही अरबी का ’कफ़ील’ यानी employer है।}