चकमक पत्थर
…………………………… अनुवाद : अभिषेक अवतंस –   

उस दिन क्रिसमस का त्यौहार था। ग्रेट निकोबार स्थित हमारे गाँव लबाबू में उल्लास छाया हुआ था। मेरे बड़े चाचा अपने परिवार के साथ राजधानी पोर्ट ब्लेयर से गाँव में हमारे साथ त्यौहार मनाने आए हुए थे। मेरे चचरे भाई-बहनों के साथ मैंने कल पूरे दिन खूब मस्ती की थी। क्रिसमस ही एक ऐसा दिन होता है जब हर जगह से लोग गाँव में इकट्ठा होते हैं। कल गाँव में बहुत चहल-पहल थी।

आज का दिन भी सुहाना था। सूरज आकाश में चमक रहा था और समुद्र हमें दूर से देख रहा था। मुझे याद है कितना सुन्दर दृश्य था। वैसा ही जैसा पापा हमेशा कहा करते थे – “भगवान पानी में रहते हैं”।

सुबह  ठीक आठ बजे भूकंप आया था। घर के पास लगे पपीते के पेड़ों से सारे पपीते नीचे आ गिरे थे। रात भर के नाच-गाने के बाद कई लोग तो इस तरह ताड़ी पीकर बेसुध सोए हुए थे कि उनको पता ही नहीं था कि आज सुबह-सुबह भूकंप आया था।

भूकंप के आने के बाद समुद्र दूर पीछे की ओर चला गया था। दूर तक सागर का काला पथरीला पेट दिखाई दे रहा था। लगता था जैसे किसी ने साँस खींच कर पानी सोख लिया हो। कई समुद्री मछलियाँ रूखी ज़मीन पर इधर-उधर तड़प रही थीं।

किन्तु अब समुद्र वापस आ रहा था।

वह लहर बहुत विशालकाय थी और उसके ऊपर जैसे सफेद झाग की कलगी लगी हुई थी जैसे अंग्रेज़ी मुर्गों की होती है। इतनी बड़ी लहर मैंने अभी तक नहीं देखी थी। पर इतनी बड़ी भी नहीं थी कि मैं वहाँ से भाग जाऊँ।

मैं तेरह साल का था और आसानी से डरने वाला नहीं था। लहर किनारे तक आकर टकराएगी और शायद एक-दो मछलियाँ भी घास पर आ गिरेंगी। शायद रात के खाने का इंतज़ाम हो जाए। ममा पत्तों में लपेटकर मछलियों को सेंकेगी और उसके साथ नारियल तेल में पका चावल खाने को देगी। मैं अपने पेट पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराया।

लेकिन तभी मुझे याद आया, ममा तो आज खाना नहीं पकाएगी। सुबह से ही उनके सर में दर्द था। इस भूकंप ने उन्हें सरदर्द दे दिया था। आज रात पापा खाना बनाएँगे। अपनी कमर में तौलिया लपेटकर वो झूमते हुए अपनी भारी आवाज़ में गाना गाएँगे। ममा की नकल करने में उनको बड़ा मज़ा आता है। और हमें मुंह दबा कर हँसना पड़ेगा ताकि ममा की नींद में ख़लल न पड़े।

लहर अब नजदीक आ रही थी। वह ऐसी आवाज़ निकाल रही थी जैसे कि किसी गेंद के अंदर दुनिया भर के जानवरों को बंद कर दिया गया हो। शेर की चिंघाड़, साँड़ का रंभाना और साँप का फुफकारना भी। कितना मजेदार था। कितना अच्छा होता अगर मेरे भाई भी यहाँ मेरे साथ होते। मैं गाँव वापस दौड़कर उनको बुलाना चाहता था। परन्तु मैं लहर को किनारे से टकराते हुए देखना चाहता था। साथ ही मैं अपनी मछलियाँ भी उनके साथ साझा करना नहीं चाहता था।

तट पर और भी लोग थे। पास ही कुछ लड़के रेडियो के संगीत पर नाचते हुए अपनी पेप्सी की बोतल में भरी ताड़ी पी रहे थे। एक का पैर अपनी नाव के लंगर से बंध हुआ था। पर यह तय था कि वह समुद्र में नहीं जाने वाला था। निकोबारी लोग समुद्र और उसकी ताकत का सम्मान करते हैं।

पीछे रेत पर कुछ गिरने की सी आवाज़ आई। पर यह आवाज़ नारियल के गिरने जैसी नहीं थी और न ही जंगली सूअर की तरह। उस शानदार लहर को एक पल भी अपनी आँखों से ओझल न होने देने की लालसा के बावजूद मैं बेमन पीछे देखने के लिए मुड़ा। वहाँ दूर एक लड़का खड़ा था। एक शौम्पेन जाति का लड़का। बीहड़ जंगलों में रहने वाली एक आदिवासी जाति।

पापा कहते थे, एक सच्चे ईसाई के रूप में हमें सभी प्राणियों का सम्मान करना चाहिए। पर पापा भी शौम्पेन लोगों के लिए सम्मान देने का भाव नहीं जुटा पाते थे। दरअसल वे लोग गुफा मानव से थोड़ा ही बेहतर थे। वे आधुनिक जीवन से अनजान थे। वे जानवरों की बलि देते थे, दूसरों का सामान चुराते थे और हेलिकौप्टरों पर तीरे बरसाते थे।

उस लड़के की एक आँख पर काले बालों की लट लटक रही थी। और दूसरी आँख मेरी ओर ही देख रही थी।

उसने अपनी कर्कश आवाज़ में कहा – “पहाड़ी लहर”।

मेरी कल्पना में ऐसी आवाज़ किसी बोलने वाले कुत्ते की ही हो सकती थी।

मैने कहा – “क्या तुम मुझसे बात कर रहे हो?”

शौम्पेन लोग आमतौर पर दूसरों लोगों से घुलते-मिलते नहीं है। वे प्राय: ग्रेट निकोबार के जंगलों में सभ्यता से दूर रहना ही पसंद करते हैं। किन्तु पिछले कुछ सालों से कुछ दूरियाँ घटी हैं और अब शौम्पेन और निकोबारी लोग कुछ लेन-देन करने लगे हैं। पर यह पहला मौका जब किसी शौम्पेन ने मुझे पुकारा था।

मैंने अपनी छाती पर थपकी मारते हुए उससे पूछा, क्या तुम मुझसे बात कर रहे हो?

लड़के ने कहा – “पहले जमीन हिलती है और फिर पहाड़ी लहर आती है। हमें यहाँ से जाना चाहिए।“

 वह लड़का हमारी भाषा ’निकोबारा’ को अजीब उच्चारण के साथ बोल रहा था। शौम्पेन लोगों की अपनी प्राचीन भाषा है पर उनकी जाति के अलावा कोई उसे नहीं समझता। और शायद सीखना भी नहीं चाहता ।

उसने जंगल की ओर इशारा करते हुए फिर से कहा – “चलो चलें यहाँ से”।

मेरी ममा ने मुझे बताया था कि कभी भी किसी शौम्पेन के पीछे कहीं मत जाना और खासकर जंगल में तो कभी नहीं। और मैं अपनी ममा के कहे को अनसुना नहीं करना चाहता था। वैसे भी मैं उस विशाल लहर का समुद्र किनारे की रेत से टकराने का सुन्दर नज़ारा देखना चाहता था।

मैं वापस समुद्र की ओर मुड़ गया। अब हमारी बातचीत समाप्त हो गई थी।

उस विशालकाय लहर को देखकर मेरी सांसे थम गई। अचानक वह मेरे बहुत करीब आ गई थी। मुझे नहीं पता था कि वो कितनी बड़ी है। पर शायद पेड़ों के बराबर तो होगी ही। और तेज भी। ऐसा लगता था कि सिर्फ ऊपर का पानी ही नहीं बल्की समूचा समुद्र ही इस तरफ आ रहा था।

मैंने खुद से ही कहा – क्या हैं ये? लेकिन मेरी आवाज़ उस विशाल लहर के शोर में कहीं खो गई। मैं अपने आप को बौना महसूस कर रहा था। जैसे एक चींटी का सामना उसके ऊपर पड़ने वाले आदमी के पैर से हो गया हो। पर मैं बेवकूफ था।  ……..लहर आएगी और किनारे से टकराएगी।  लहरे हमेशा ऐसा ही करती थी।

मैंने समुद्र तट को दूर से देखा। वे लड़के वापस नहीं आ रहे थे। दरअसल वे तो चिल्ला-चिल्ला कर उस अनोखे नज़ारे का मज़ा ले रहे थे।

मैंने अपनी जेब में एक हाथ महसूस किया। यह मेरा हाथ नहीं था। एक साँवला हाथ साँप की तरह मेरी जेब में घुसा हुआ था। वह शौम्पेन लड़का मेरी जेब टटोल रहा था।

मैंने उसके लकड़ी जैसे पतले हाथ को पकड़ते हुए कहा – ए रुको। पर तब तक उस हाथ के साथ मेरे पैसे का बटुआ भी गायब हो गया था। वह छोटा शोम्पेन लड़का तट के बाहरी किनारे पर उगे ताड़ के पेड़ों की तरफ भाग रहा था। मुझे पता था कि वह अब गायब हो जाएगा, और मैं उसे फिर कभी भी नहीं पकड़ पाउंगा। शौम्पेन लोग जंगल में रहने वाले प्रेतों की तरह होते हैं। उनको ढूंढना लकड़ी के लट्ठों के बीच मगरमच्छ को पहचानने से भी अधिक मुश्किल था।

पर पता नहीं किस कारण, वह लड़का रुक गया। वह मुड़ा और उसने मुझे दिखाते हुए मेरा बटुआ हवा में लहराया। एक उपहास जिसे शायद ही कोई 13 साल का लड़का सहन कर पाएगा। भले ही वह छोटा चोर शौम्पेन था। लेकिन मेरे पैर तेज़ थे और बदला लेने की भावना मुझे ताकत दे रही थी। मैं लहर को भूल गया और दौड़ पड़ा।

यह एक शानदार पीछा था। मैं दौड़ रहा था लेकिन शौम्पेन लड़का तो जैसे जंगल को खुली किताब की तरह पढ़ चुका था। रेतीली कीचड़ से भरे सारे गड्ढे और जमीन से निकलती जड़े, जैसे मुझे गिराने की योजना के हिस्से थे। उसकी कमर से एक तीरों का तरकश लटक रहा था। फिर मैंने उसकी कमर के साथ एक छोटा धनुष भी झूलता देखा। वो मुझे तीर से नहीं मारेगा। पक्का नहीं मारेगा। मैं अपना पीछा करने का अभियान बंद करने ही वाला था कि जैसे लड़के ने मेरी मंशा भांप ली। उसने अपने सिर के ऊपर मेरे बटुए को इस तरह हिलाया जैसे कि वह कोई इनाम हो। मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने अपने नथुनों में जोर से सांस भरी।

मैंने खुद से कहा, और तेज। तुम उससे लंबे लड़के हो और उसके तीरों को उसी के पैरों पर पटक कर तोड़ दोगे।

फिर पाँच सेकन्ड तक मैं और तेज़ दौड़ता रहा। फिर दुनिया बदल गई। मुझे लगा कि मेरे कानों में मेरे उबलते खून की आवाज़ आ रही है। पर आवाज़ तो तेज़ होती जा रही थी। चारों ओर हवाओं में वही आवाज़ तैर रही थी और कीट-पतंगों को उसने भगा दिय था। वह लहर थी जो तट की ओर आ रही थी।

मैं दौड़ता रहा, क्योंकि मैं दौड़ ही रहा था। और शायद इसलिए भी क्योंकि कहीं मुझे आभास था कि यह लहर कोई साधारण लहर नहीं है। मैंने ताड़ के पेड़ों के झुरमुट से अपनी दायीं तरफ देखा जहाँ वे लड़के बंदरों की तरह नाचते हुए लहर को देख रहे थे।

वही वह पल था जब मैं समझ गया। मैंने देखा कि लहर आई लेकिन किसी तैराक के हाथों की तरह ऊपर- नीचे होती हुई नहीं बल्की किसी मुक्केबाज के हाथों की तरह जिसके सर पर एक बड़ा मुक्का लगा था।

उस मुक्के ने लड़कों को पलक झपकते ही डूबो दिया। कोई संघर्ष या रोना नहीं हुआ। जैसे अभी जिन्दा थे और अभी मर गए। मेरी आँखों में आसूँ आ गए। लेकिन मैं दौड़ता रहा। शौम्पेन लड़का नंगे पाँव जमीन को पढ़ते हुए मुझसे आगे भागा जा रहा था। मैं उसके पीछे-पीछे दौड़ रहा था। मुझे याद है ममा ने कहा था कि कभी किसी शौम्पेन आदमी का पीछा मत करना, पर अब मैं तेरह साल का हो गया था, और अपने निर्णय खुद ले सकता था।

लहर से पानी के छींटें और पत्थर मेरी गर्दन पर बरस रहे थे। जैसे वह मुझे संदेश दे रही थी कि “छोटे लड़के मैं तुम्हारे पास आ रहीं हूँ, तुम्हारे छोटे पैर मुझसे पीछा नहीं छुड़ा सकते”।

सामने एक पहाड़ी थी। उस पर असन के पेड़ कुछ इस तरह उगे हुए थे जैसे किसी जंगली सूअर की पीठ पर उगे बाल। बटुआ चोर पहाड़ी की चोटी की ओर दौड़ा जा रहा था। मैंने भी वैसा ही किया।

मेरे टखनो पर समुद्री झाग लिपटी हुई थी। बहुत तेज़ आवाज़े आ रहीं थी। पेड़ों की टहनियाँ जैसे भालों की तरह साँय-साँय हवा से नीचे फेंकी चली आ रही थीं। मछलियाँ आकाश से बरस रही थी। उनकी आँखे जैसे आश्चर्य से फटी-फटी थी।

पानी अब मेरे घुटने तक चढ़ आया था। नमकीन और ठंडा पानी। पर कीचड़ मिला हुआ गंदला। शौम्पेन लड़का फटाफट एक ऊँचे पेड़ पर जा चढ़ा। वह पेड़ पर इतनी जल्दी-जल्दी और आसानी से चढ़ा जैसे कि कोई जंगली जानवर हो। मैंने उसकी नकल करते हुए ऊपर चढ़ने की कोशिश की, पर मैं शौम्पेन नहीं हूँ।  हम निकोबारी लोग समुद्र के किनारों  के वासी है, हमारा जंगली जीवन से वास्ता दूर-दूर तक नहीं है। पेड़ की खुरदरी छाल पर मेरा पैर फिसल गया, मेरे पैर छिल गए और नाखूनों से खून आने लगा।

रोते हुए मैंने पीछे मुड़ कर देखा। पीछे चारों ओर तबाही ही तबाही थी। लहर ने पूरे समुद्र तट को लील लिया था और अब हमारे गाँव की ओर जा रही थी। वह पहाड़ी पर भी चढ़ने की कोशिश कर रही थी, ठीक मेरे पैरों के नीचे।

मैंने सोचा कि लहर अब मुझे पेड़ से नीचे गिरा देगी। फिर मुझे बहा कर गाँव ले जाएगी। शायद पूरे द्वीप को ही डूबो देगी। दुनिया को यह क्या हो गया था? क्या यही वह कयामत का दिन था जिसकी कहानी मैंने गिरजाघर में सुनी थी।

तभी मेरी जान में जान आई, जब मैंने देखा कि पानी का स्तर घट रहा था। मेरे पैरों के नीचे से पानी चला गया था। मैं रो रहा था। तभी मुझे ध्यान आया कि शायद मेरा परिवार इतना खुशकिस्मत नहीं था।

 मैं फिर रोने लगा। नीचे पेड़ से नीचे उतरकर मैं कम होते पानी के सिरे तक गया और अपने गाँव की ओर देखने लगा। पर वहाँ दूर-दूर तक पानी ही पानी था। उसकी सतह पर हमारे घरों का मलबा और सामान तैर रहे थे। मैं वहाँ खड़ा होकर वहाँ अपने गाँव को देखकर रोता रहा। मैं कितना असहाय महसूस कर रहा था। मेरे भाई, मेरी ममा, मेरे पापा कैसे होंगे?

कुछ देर के लिए मैं शांत हुआ ही था कि फिर से मेरे रोंगटे खड़े हो गए। हे भगवान, उस लहर के पीछे एक दूसरी विशाल लहर फिर से आ रही थी। यह दूसरी पिछली लहर से कम से कम छह हाथ ऊँची थी और मुझे आसानी से पहाड़ी से नीचे पटक सकती थी। मैं वापस पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगा। पर पेड़ की छाल पानी से भीगकर फिसलन भरी हो गई थी। मेरे हाथों में काँटे चुभे हुए थे। मुझे अब लगने लगा था कि मेरा अंत निकट है। मैनें नीचे पानी में बेजान लोगों कॊ बहते देखा। एक शार्क भी मुँह बाए मेरी तरफ झपटने की तैयारी कर रही थी।  शायद मैं उसका अंतिम भोजन था।

तभी मुझे ऊपर पेड़ पर खींच लिया गया। उस शौम्पेन लड़के ने मेरे कंधों को पकड़ कर ऊपर खींच लिया था। इतने में मेरी एक चप्पल नीचे गिर गई। तपाक से उसे शार्क ने अपने मुँह में लपक लिया। उस चप्पल की जगह मेरा पैर भी उसके मुँह में जा सकता था।

अब मैं पेड़ की डाल पर बैठा था। चारों ओर पत्ते थे। पर क्या फायदा इनका। कुछ ही देर में लहर पेड़ को गिरा देगी और हम दोनों पानी में डूब जाएंगे। शौम्पेन लड़का मेरी बगल में बैठा था। शांत परन्तु अपनी विस्मय भरी आँखों से पानी को देख रहा था। उसे पता था कि जो हो रहा था वह हमारे काबू में नहीं था।

कुछ घंटों बाद हमे पता चला कि हम बच गए हैं। पानी बहुत देर तक द्वीप के अंदर बहता रहा पर हमारा पुराना पेड़ हिला भी नहीं। वह पहाड़ी जैसे एक खुद एक टापू बन गया और  हमारा समूचा द्वीप समुद्र का हिस्सा।

नीचे पानी में वह सब बह रहा था जो हम कभी भी नहीं देखना चाहते थे। लहर ने समूचे द्वीप को निगल लिया था। घरों का सामान, मरे जानवर, साईकिल, गेंद, टोकरी और बेजान लोग। मेरा मन दुख से भर गया जब मैंने पानी में बहती उस लड़की की लाश को देखा जो मेरे घर के पास ही रहती थी। उसके काले लंबे बाल पानी में लहरा थे। वो भी दूर कहीं बही जा रही थी।

अचानक मेरी बाँह में जोर का दर्द उठा। मैंने देखा कि शौम्पेन लड़का मेरी बाँह में चुभा काँटा निकाल रहा था। मैंने उसके हाथ को झटका और कांटे को खींच कर निकालने लगा।

शौम्पेन लड़के ने मजबूती से मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा…खींचों नहीं घुमाकर निकालो। खींचने से बहुत बड़ा छेद हो जाएगा।

उसने कांटे को फिर से पकड़ा, और आराम से घुमा-घुमा कर बाहर निकाल दिया। काँटा खून से सना हुआ था। मुझे दर्द हो रहा था। मैं दुखी था। पर तब मुझे याद आया कि मैं जिन्दा था। वो लड़की मर गई थी। और न जाने मेरा परिवार किस हाल में होगा।

मैं पेड़ से नीचे कूदकर अपने गाँव वापस जाना चाहता था। शायद मेरे पापा और ममा मुझे ढूंढ रहे हो? पर दूर तक सिर्फ पानी और पेड़ों के ऊपरी हिस्से दिखाई दे रहे थे। लहर बहुत तेज़ थी। जमीन पर लहर अब भी तेज़ थी और गोल-गोल चक्कर काट रही थी। इसलिए मैं पेड़ पर ही बैठा रहा। एक जेबकतरे शौम्पेन की दया पर।

एक जंगली जिसने मेरी जान बचाई और मेरी बाँह का कांटा निकाला।

मैंने ध्यान से उस लड़के को देखा। वह दोस्ती करने लायक दिखा लेकिन था तो वो चोर ही।

मैंने उससे पूछा – तुम यहाँ क्यूँ आए हो?

उसने सर हिलाते हुए कहा – मैं और लोगों के साथ ऊँची जगह पर जा रहा था। पर तभी मैंने तुम्हे देखा। तुम लहर की ओर जा रहे थे। सभी को पता होता है कि पहले जमीन हिलती है और फिर पहाड़ी लहर आती है।

मैंने ऐसे सर हिलाया जैसे कि मुझे यह बात पता थी। यदि निकोबारी लोगों को यह बात पता होती तो वे इस हादसे के शिकार न बनते। शायद शौम्पेन लोगों को बेवकूफ समझने का हमारा विचार पूरी तरह सही नहीं था।

यानी तुम्हारा परिवार सुरक्षित है?

हाँ सभी लोग ऊँची जगह पर चले गए थे। ईम (पिताजी) मुझ पर गुस्सा करेंगे कि मैं पेड़ पर एक निकोबारी के साथ लटका हुआ हूँ।

यहीं होता है जब तुम किसी का बटुआ चोरी करते हो। तुमने सोचा कि लहर मुझे डूबो देगी और तुम मेरा बटुआ आसानी से चुरा लोगे।

चोरी…उसने थूकते हुए कहा। तुम बेवकूफ हो। ईम ठीक कहते हैं कि निकोबारी लोग बेवकूफ होते हैं। अच्छा होता कि मैं किसी सूअर की जान बचाता।

यह बोलकर वह दूसरी डाल पर चला गया। मैं वही बैठा रहा और बारी-बारी से अपने शरीर में चुभे कांटे निकालने लगा।

दूर कहीं से किसी औरत के रोने की आवाज़ आ रही थी। शायद वह मेरी माँ होगी। कैसे समुद्र इतना पागल हो सकता है? मैं सोचता रहा।

मैंने पत्तों की खड़खड़ाहट सुनी। शौम्पेन लड़का मेरी तरफ ही आ रहा था। उसका चेहरा गंभीर था। उसने अपने धनुष में एक तीर चढ़ाया हुआ था। तीर के निशाने पर मैं था।

उसने कहा – चुप रहो निकोबारी। हिलो मत।

मैं हिला नहीं। मेरा मन हुआ कि नीचे पानी में कूद जाँऊ। पापा सही कहते थे कि शौम्पेन लोगों के लिए किसी आदमी की जान लेना आसान बात थी।

उसने तीर को कान तक खींचा और छोड़ दिया। तीर पत्तों के बीच से होता हुआ मेरे बाजू के पास से निकल गया। किसी चिड़िया के चीखने की आवाज़ आई। तीर में पतली रस्सी बंधी हुई थी। शौम्पेन लड़के ने रस्सी को खींचा तो एक अधमरी चिड़िया तीर में फंसी दिखी। झटपट शौम्पेन लड़के ने उसकी गरदन मरोड़ कर उसका काम तमाम कर दिया।

उसने हँसते हुए कहा – खाने का इंतजाम हो गया।

मुझे अहसास हुआ कि मैं बेकार ही उसे खूनी-कातिल समझ रहा था। वह तो सिर्फ हमारे खाने का इंतजाम कर रहा था।

शौम्पेन लड़के ने तीर निकाल दिया और चिड़िया को मेरी तरफ फेंकते हुए कहा – इसके पंख नोच सकते हो?

यह काम मैं बखूबी जानता था। मैंने चिड़िया के पंख साफ करना शुरू किया। कितना बदनसीब पक्षी था। जान बचाने के लिए भी उसे वही पेड़ मिला था जिस पर  उसे भोजन बनाने वाले दो लोग बैठे थे।

जब तक मैं पंख निकाल रहा था। तब तक शौम्पेन लड़के ने अपने कमरबंद में से एक छोटा चाकू निकाला और पास की डाल पर एक छेद बनाने में जुट गया। फिर उस छेद में सूखे पत्ते चुन-चुन कर डालने लगा। फिर उसने अपने थैले से दो छोटे काले पत्थर निकाले और उन्हे रगड़ने लगा। उन पत्थरों को रगड़ने से चिंगारियाँ निकल रही थीं। आखिरकार एक चिन्गारी ने सूखे पत्तों में आग लगा ही दी। सफेद धुँए की लकीर उठने लगी। मेरे आस काफी देर से मंडरा रहे मच्छर भाग खड़े हुए।

मैंने कहा – वाह। मैंने ऐसे पत्थरों को कभी नहीं देखा था। चारों ओर पानी से घिरे पेड़ पर आग पैदा करने वाले ये पत्थर लाजवाब थे।

वह लड़का कुछ देर तक उन पत्थरों का नाम मेरी भाषा ’निकोबारा’ में याद करने की कोशिश करता रहा।

अचानक वह बोल पड़ा – चकमक पत्थर…..।

अब वह लड़का मुझे अच्छा लगने लगा। भले ही उसने मेरे पैसे चुराए थे लेकिन उसने मेरी जान बचाई थी और अब मुझे खाना खिला रहा था।

हमने उस चिड़िया को पकाया और आराम से बाँट कर खाया। शौम्पेन लड़के ने उसकी हड्डियों को नीचे पानी में फेंक दिया।

उस शार्क के लिए जो तुम्हारे पीछे आ रहीं थी।

मैंने उस लड़के को शुक्रिया कहा। शायद हमारी बातचीत दुबारा कभी न हॊ।

तभी नीचे से एक आवाज़ आई – तुम लोग कैसे ऊपर पहुँच गए। हमने दूर से तुम्हारे पेड़ से धुँआ उठता देखा तो यहाँ चले आए।

एक नाव थी जिसमें दो लोग सवार थे। एक को मैं पहचानता था। हमारे गाँव के पास के ही एक निकोबारी गाँव का था।

उसने कहा – इतने पानी में तुमलोगों ने आग कैसे जलाई?

फिर उसने शौम्पेन लड़के को देखा। और कहा – अच्छा…..जंगली जादू वाले शौम्पेन लोग। अब तुम दोनों नीचे आ जाओ। यह पेड़ अधिक देर तक टिकने वाला नहीं है।

शौम्पेन लड़का फुर्ती से नीचे नाव में उतर कर बैठ गया। मैं आराम से संभल-संभल कर नीचे उतरा।

मैंने उस नाव वाले आदमी से पूछा – क्या मेरे गाँव में सब ठीक है?

उसने कहा- कोई गाँव इस लहर से बचा नहीं है। पर एक आशा है कि कई लोग ऊँची जगहों पर चले गए थे। हम बहुत देर से जीवित लोगों को तलाश रहे हैं। पर बहुत देर बाद केवल तुम दोनों ही मिले हो।

कुछ घंटो बाद हमारी नाव जमीन के किनारे के पास पहुँची। शौम्पेन लड़का उठ कर खड़ा हो गया।

दूसरे आदमी ने कहा – बैठ जाओ बेवकूफ शौम्पेन।

मेरे मुंह से अनायस निकल पड़ा – उसे बेवकूफ मत कहो, उसने मेरी जान बचाई है।

वह लड़का अब नाव से कूद कर किनारे जा पहुँचा। और ताड़ के पेड़ों की तरफ जाने लगा। शायद यह आखिरी मौका था जब मैं उसे देखूंगा। पर मेरी नज़रों से ओझल होने से पहले वह रुका और मेरी ओर देखते हुए उसने अपनी जांघ को थपथपाया। वहीं जहाँ एक जेब को होना चाहिए।

मैने अपनी जेब में हाथ डाला। उसमें मेरा बटुआ मौजूद था। बटुए में पैसे के साथ दो काले पत्थर भी थे। जाते-जाते उसने मुझे एक अनोखा उपहार दिया था।

उसने अपनी जान जोखिम में डालकर मेरी जान बचाई थी। और मैं उसे अब तक चोर समझ रहा था। मुझे अपनी सोच पर शर्म आ रही थी। भले ही पापा मुझे मना करें। मैं जंगल में उसे खोजूंगा और उसे अपने मन की बात बताउंगा। शायद पापा मुझे रोकने के लिए जिन्दा ही न हो।

यह सब सोचकर मैं रोने लगा।

नाव वाले आदमी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा – चिंता मत करो बेटा । अब तुम उस जंगली शौम्पेन से सुरक्षित हो।

मैनें उस आदमी को बोलने से नहीं रोका। क्यूँकि सुबह तक तो मैं भी यही सब सोचता था।

नाव अब ऊँची जगह के करीब आ गई थी। दूर से मुझे मेरा छोटा भाई अकेला रोता हुआ खड़ा दिखाई दिया। बहुत सारे लोगों की लाशें वहाँ जमा की जा रहीं थी। शायद पापा-ममा भी आस-पास ही मुझे खोज रहे हों।