वैश्वीकरण की चर्चा का आरंभ विश्वग्राम की सुनहरी कल्पना से हुआ था। इस कल्पना के अंतर्गत सारी दुनिया के लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने, सबको एक पारिवारिक सूत्र में बाँधने के लिए अनगिनत नई नीतियाँ और योजनाएँ सामने आई हैं। विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन जैसी अनेक संस्थाएं एक साथ सक्रिय हुई। इस क्रम में धरती के चप्पे.चप्पे की ऊर्जा और उत्पादक क्षमता का सर्वेक्षण हो चुका है। परिणाम यह है कि विश्वग्राम धीरे.धीरे हितों के भूमण्डलीयकरण में बदलता गया है। अपने देश के सन्दर्भ में देखें तो 1990 के बाद तेजी से यह देश वैश्वीकरण का लक्ष्य बना है। अपने चारों ओर के सामाजिक.सांस्कृतिक परिदृश्य में टटोलिया तो कई नए.नए शब्द अपनी नई.नई प्रयुक्तियों के साथ सक्रिय मिलेंगे। जैसे बाजारवाद, उत्तर उपनिवेशवाद, उत्तर आधुनिकतावाद, विश्वबाजार, संरचनावाद, विखण्डनवाद, उपभोक्तावाद, रेडिकलिज्म, ट्रांससेमियाॅलाॅजी और न जाने क्या.क्या। नए.नए अनुशासनों और प्रक्षेत्रों में पुराने शब्द भी नई चमक और धमक के साथ उपस्थित है। जैसे गुरु शब्द का जो हाल बेहाल हुआ है, उससे तो आप सब परिचित हैं। मैनेजमेन्ट गुरु, बिजनेस गुरु, योगा गुरु, फैशन गुरु, डेकोरेशन गुरु से लेकर एम0टी0वी0 चैनल के लव गुरु तक मौजूद है गुरु शब्द। रोलाॅ बार्थ ने इसे ही अभाषिकीय से दिखाई देने वाले भाषिक मूल्यों का विकास कहा है। यह स्थिति भी वैश्वीकरण की बहुत सारी चुनौतियों में से एक है। गुदोज्मुनिक ने अपनी किताब ब्पअपसप्रंजपवद ंदक ळसवइंस च्तवइसमउ का आरंभ ही इस उक्ति के साथ किया है कि, भ्मतक भ्नदजपदह पे दवू जीम ूंल व िजीम निजनतमण् जनसमूह का आखेट करने के लिए ताकते और प्रविधियाँ सक्रिय हैं। जनसमूह के इसी आखेट के खिलाफ खड़ा है गांधी दर्शन। गांधी की चर्चा करना बीते हुए काल से संबंधित नास्टेल्जिया नहीं है। महात्मा गांधी ही नहीं हमारे गुजरे हुए अतीत के किसी भी प्रेरणा व्यक्तित्व की बात करना पलायन और पीछे मुड़ने का पर्याय नहीं। इसमें सन्देह नहीं है कि महात्मा गांधी व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व थे- ऐसे व्यक्तित्व जिनकी कर्मठता ने मनुष्य के शिखरों का स्पर्श किया था। ऐसे व्यक्तित्व का मौजूद होना भारतीय वातावरण में वर्तमान और भविष्य को एक सूत्र में बांधने का आधार था। आज भी महात्मा गांधी का कृतित्व और चिंतन वर्तमान और भविष्य दोनो ंके लिए एक मजबूत आधारशिला है। विशेषतः वैश्वीकरण के इस दौर में आम आदमी पर मंडराते खतरों से जूझने की ताकत देता है। वैश्वीकरण के कारण पूँजीवाद और बाजारवाद के बढ़ते आक्रमणों का सामना करने में गांधीजी की कथनी और करनी सही मार्गनिर्देश करती है। वास्तव में गांधी दर्शन ही वह मुख्य द्वार है जिसे लांघकर ही भविष्य के आंगन में प्रवेश किया जा सकता है। इसलिए गांधी जी भविष्य हैं अतीत नहीं। वैश्वीकरण ने बड़े पैमाने पर समाज को विखण्डित किया है और शास्वत मानवीय मूल्यों को समाप्त करने की सािजश की है। बाजार पर पैनी निगाह रखने वाले सूचना तंत्र के विस्तार ने हर आदमी को एक आर्थिक इकाई में बदल डाला है। वैश्वीकरण के इस दौर में लोग धीरे.धीरे वस्तु में बदलते जा रहे हैं। कुछ साल पहले प्रकाशित बदिउज्जमा के उपन्यास ‘एक चूहे के मौत’ में मुख्य पात्र एक चूहेखाने में काम करते.करते खुद भी एक चूहा बन जाता है। लेकिन वैश्वीकरण की आदतें तो मनुष्य को मशीन की तरह निर्जीव बनाती जा रही है। ऐसे हालात में महात्मा गांधी के जीवन और सोच की दिशाएं रोशनी की लकीर की तरह रास्ता दिखलाती है। साम्यवाद और समाजवाद में अपनी आस्था रखते हुए गांधीजी ने कहा था .‘वर्गहीन समाज एक आदर्श है जो केवल हमारा ध्येय ही नहीं होना चाहिए बल्कि हमें उसके लिए प्रयास भी करना चाहिए और ऐसे समाज में, वर्गों, अथवा समुदायों का कोई स्थान नहीं होता। मैं स्वयं को साम्यवादी भी कहता हूँ ………….मेरा साम्यवाद समाजवाद से बहुत अधिक भिन्न नहीं है। वह दोनों का सामंजस्यपूर्ण मेल है। जहाँ तक मैंने समझा है, साम्यवाद, समाजवाद कि स्वाभाविक परिणति है।’ इसलिए महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत आचार व्यवहार से अपने जीवन दर्शन का सूत्रपात किया। अपने सम्पूर्ण जीवन को उन्होंने सत्य का प्रयोग कहा है और यही उनकी आत्मकथा का उपशीर्षक है। वैश्वीकरण के इस दौर में जब संसार भर में विश्व भर की बहुराष्ट्रीय व्यवसायिक कम्पनियाँ अपना माल बेंचकर अधिक से अधिक लाभ कमाने में जुटी है। और हर आदमी इस मुनाफे में अपना हिस्सा बटोरने में लगा है, महात्मा गांधी ने व्यवसायिक लाभ से ऊपर उठकर मानवीय मूल्यों और राष्ट्रीय हितों की बातचीत की है। गांधी दर्शन मानवता, सत्य, अहिंसा, शांति, संतोष, अनासक्ति, एकता और राष्ट्रीयता पर आधारित था। वैश्वीकरण ने इन सारे शब्दों को शब्दकोशों में ही समेट दिया है। बड़े पैमाने पर व्याप्त आर्थिक मारामारी और विघटन के इस दौर में किसी के पास इन सबके बारे में सोचने का समय ही नहीं है। महात्मा गांधी इन्हीं सब के बारे में सचेत करते हैं। वे मनुष्य को मनुष्य बने रहने की सलाह देते हैं और इसके लिए जरूरी आचार व्यवहार का संदेश भी देते हैं। संबंधित व्यापक जीवन दर्शन प्रस्तुत करते हैं। यह वैश्वीकरण की अपनी नई व्याख्या है, जिसके अंतर्गत महात्मा गांधी समूचे संसार के लिए एक आदर्श जीवन पद्धति का आविष्कार करते नजर आते हैं। अपने जीवनकाल की अंतिम किताब ‘गांधी, अम्बेडकर, लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएं’ में डाॅ0 रामविलास शर्मा ने निष्कर्ष दिया है कि – भारतीय इतिहास में कोई भी एक व्यक्ति, किसी युग में इतने विशाल जन समुदायों को प्रभावित नहीं कर सका और विश्व इतिहास में भी किसी एक व्यक्ति का ऐसा व्यापक प्रभाव नहीं देखा गया। महात्मा गांधी का प्रभाव देश और काल की सीमाएं लांघकर आज वैश्वीकरण के इस कठिन समय में भी प्रासंगिक है। गांधीजी के जीवन दर्शन की उपादेक्ता सिर्फ इसलिए देश के लिए ही नहीं, उन सभी देशों के लिए भी है, जहाँ वैश्वीकरण ने बाजारवाद का विस्तार किया है और मनुष्य को मनुष्य बने रहने से रोकने की कोशिश की है। महात्मा गांधी के सारे विचार उनके अनुभवों से छनकर निकले हैं। उनकी सफलता इस बात में है कि वे जो सोचते हैं, वह कहते है और जो कहते हैं, वह करते हैं। कथनी और करनी की दूरी वैश्वीकरण की एक बड़ी चुनौती है। इतनी ही बड़ी चुनौती है आतंकवाद। आर्थिक समृद्धि के अंतहीन लालच ने आतंकवाद को प्रोत्साहित किया। संसार में फैले हुए हर प्रकार के आतंकवाद चाहे वह धार्मिक कट्टरपंथियों का आतंकवाद हो या अमेरिकी दादागिरी, का जवाब गांधीजी का अहिंसा सिद्धांत ही है। उनका रास्ता निर्माण और विकास का रास्ता है। उनका रास्ता विघटन और स्खलन का नहीं है। गांधीजी का चिंतन संसार के हर आदमी को जोड़ता है। दूसरी ओर वैश्वीकरण सिर्फ बाजारों का नेटवर्क मजबूत करता है। न जाने कितने प्रकार की आसंगतियों के बीच महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और चिंतन एक सुनिश्चित दिशा निर्देश देता है। लगातार बदल रही दुनिया में वैश्वीकरण एक जीवन्त प्रक्रिया है और एक गंभीर चुनौती भी। वैश्वीकरण की प्रक्रिया तो पूर्णतः नहीं रोकी जा सकती, लेकिन वैश्वीकरण की चुनौतियों का सामना महात्मा गांधी के विचारों के सहारे संभव है। अकबर इलाहाबादी का एक शेर है- दौरे गर्दू में नया हर रोज एक हंगामा है। शाहनामा हो चुका, अब दौरे गांधीनामा है। हमें स्वीकारना होगा कि गांधी जी अतीत में थे, वर्तमान में हैं और भविष्य में रहेंगे। वैश्वीकरण की चुनौतियां उनके महत्व को विचलित नहीं कर सकती। षेक अवतंस वैश्वीकरण की चर्चा का आरंभ विश्वग्राम की सुनहरी कल्पना से हुआ था। इस कल्पना के अंतर्गत सारी दुनिया के लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने, सबको एक पारिवारिक सूत्र में बाँधने के लिए अनगिनत नई नीतियाँ और योजनाएँ सामने आई हैं। विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन जैसी अनेक संस्थाएं एक साथ सक्रिय हुई। इस क्रम में धरती के चप्पे.चप्पे की ऊर्जा और उत्पादक क्षमता का सर्वेक्षण हो चुका है। परिणाम यह है कि विश्वग्राम धीरे.धीरे हितों के भूमण्डलीयकरण में बदलता गया है। अपने देश के सन्दर्भ में देखें तो 1990 के बाद तेजी से यह देश वैश्वीकरण का लक्ष्य बना है। अपने चारों ओर के सामाजिक.सांस्कृतिक परिदृश्य में टटोलिया तो कई नए.नए शब्द अपनी नई.नई प्रयुक्तियों के साथ सक्रिय मिलेंगे। जैसे बाजारवाद, उत्तर उपनिवेशवाद, उत्तर आधुनिकतावाद, विश्वबाजार, संरचनावाद, विखण्डनवाद, उपभोक्तावाद, रेडिकलिज्म, ट्रांससेमियाॅलाॅजी और न जाने क्या.क्या। नए.नए अनुशासनों और प्रक्षेत्रों में पुराने शब्द भी नई चमक और धमक के साथ उपस्थित है। जैसे गुरु शब्द का जो हाल बेहाल हुआ है, उससे तो आप सब परिचित हैं। मैनेजमेन्ट गुरु, बिजनेस गुरु, योगा गुरु, फैशन गुरु, डेकोरेशन गुरु से लेकर एम0टी0वी0 चैनल के लव गुरु तक मौजूद है गुरु शब्द। रोलाॅ बार्थ ने इसे ही अभाषिकीय से दिखाई देने वाले भाषिक मूल्यों का विकास कहा है। यह स्थिति भी वैश्वीकरण की बहुत सारी चुनौतियों में से एक है। गुदोज्मुनिक ने अपनी किताब ब्पअपसप्रंजपवद ंदक ळसवइंस च्तवइसमउ का आरंभ ही इस उक्ति के साथ किया है कि, भ्मतक भ्नदजपदह पे दवू जीम ूंल व िजीम निजनतमण् जनसमूह का आखेट करने के लिए ताकते और प्रविधियाँ सक्रिय हैं। जनसमूह के इसी आखेट के खिलाफ खड़ा है गांधी दर्शन। गांधी की चर्चा करना बीते हुए काल से संबंधित नास्टेल्जिया नहीं है। महात्मा गांधी ही नहीं हमारे गुजरे हुए अतीत के किसी भी प्रेरणा व्यक्तित्व की बात करना पलायन और पीछे मुड़ने का पर्याय नहीं। इसमें सन्देह नहीं है कि महात्मा गांधी व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व थे- ऐसे व्यक्तित्व जिनकी कर्मठता ने मनुष्य के शिखरों का स्पर्श किया था। ऐसे व्यक्तित्व का मौजूद होना भारतीय वातावरण में वर्तमान और भविष्य को एक सूत्र में बांधने का आधार था। आज भी महात्मा गांधी का कृतित्व और चिंतन वर्तमान और भविष्य दोनो ंके लिए एक मजबूत आधारशिला है। विशेषतः वैश्वीकरण के इस दौर में आम आदमी पर मंडराते खतरों से जूझने की ताकत देता है। वैश्वीकरण के कारण पूँजीवाद और बाजारवाद के बढ़ते आक्रमणों का सामना करने में गांधीजी की कथनी और करनी सही मार्गनिर्देश करती है। वास्तव में गांधी दर्शन ही वह मुख्य द्वार है जिसे लांघकर ही भविष्य के आंगन में प्रवेश किया जा सकता है। इसलिए गांधी जी भविष्य हैं अतीत नहीं। वैश्वीकरण ने बड़े पैमाने पर समाज को विखण्डित किया है और शास्वत मानवीय मूल्यों को समाप्त करने की सािजश की है। बाजार पर पैनी निगाह रखने वाले सूचना तंत्र के विस्तार ने हर आदमी को एक आर्थिक इकाई में बदल डाला है। वैश्वीकरण के इस दौर में लोग धीरे.धीरे वस्तु में बदलते जा रहे हैं। कुछ साल पहले प्रकाशित बदिउज्जमा के उपन्यास ‘एक चूहे के मौत’ में मुख्य पात्र एक चूहेखाने में काम करते.करते खुद भी एक चूहा बन जाता है। लेकिन वैश्वीकरण की आदतें तो मनुष्य को मशीन की तरह निर्जीव बनाती जा रही है। ऐसे हालात में महात्मा गांधी के जीवन और सोच की दिशाएं रोशनी की लकीर की तरह रास्ता दिखलाती है। साम्यवाद और समाजवाद में अपनी आस्था रखते हुए गांधीजी ने कहा था .‘वर्गहीन समाज एक आदर्श है जो केवल हमारा ध्येय ही नहीं होना चाहिए बल्कि हमें उसके लिए प्रयास भी करना चाहिए और ऐसे समाज में, वर्गों, अथवा समुदायों का कोई स्थान नहीं होता। मैं स्वयं को साम्यवादी भी कहता हूँ ………….मेरा साम्यवाद समाजवाद से बहुत अधिक भिन्न नहीं है। वह दोनों का सामंजस्यपूर्ण मेल है। जहाँ तक मैंने समझा है, साम्यवाद, समाजवाद कि स्वाभाविक परिणति है।’ इसलिए महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत आचार व्यवहार से अपने जीवन दर्शन का सूत्रपात किया। अपने सम्पूर्ण जीवन को उन्होंने सत्य का प्रयोग कहा है और यही उनकी आत्मकथा का उपशीर्षक है। वैश्वीकरण के इस दौर में जब संसार भर में विश्व भर की बहुराष्ट्रीय व्यवसायिक कम्पनियाँ अपना माल बेंचकर अधिक से अधिक लाभ कमाने में जुटी है। और हर आदमी इस मुनाफे में अपना हिस्सा बटोरने में लगा है, महात्मा गांधी ने व्यवसायिक लाभ से ऊपर उठकर मानवीय मूल्यों और राष्ट्रीय हितों की बातचीत की है। गांधी दर्शन मानवता, सत्य, अहिंसा, शांति, संतोष, अनासक्ति, एकता और राष्ट्रीयता पर आधारित था। वैश्वीकरण ने इन सारे शब्दों को शब्दकोशों में ही समेट दिया है। बड़े पैमाने पर व्याप्त आर्थिक मारामारी और विघटन के इस दौर में किसी के पास इन सबके बारे में सोचने का समय ही नहीं है। महात्मा गांधी इन्हीं सब के बारे में सचेत करते हैं। वे मनुष्य को मनुष्य बने रहने की सलाह देते हैं और इसके लिए जरूरी आचार व्यवहार का संदेश भी देते हैं। संबंधित व्यापक जीवन दर्शन प्रस्तुत करते हैं। यह वैश्वीकरण की अपनी नई व्याख्या है, जिसके अंतर्गत महात्मा गांधी समूचे संसार के लिए एक आदर्श जीवन पद्धति का आविष्कार करते नजर आते हैं। अपने जीवनकाल की अंतिम किताब ‘गांधी, अम्बेडकर, लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएं’ में डाॅ0 रामविलास शर्मा ने निष्कर्ष दिया है कि – भारतीय इतिहास में कोई भी एक व्यक्ति, किसी युग में इतने विशाल जन समुदायों को प्रभावित नहीं कर सका और विश्व इतिहास में भी किसी एक व्यक्ति का ऐसा व्यापक प्रभाव नहीं देखा गया। महात्मा गांधी का प्रभाव देश और काल की सीमाएं लांघकर आज वैश्वीकरण के इस कठिन समय में भी प्रासंगिक है। गांधीजी के जीवन दर्शन की उपादेक्ता सिर्फ इसलिए देश के लिए ही नहीं, उन सभी देशों के लिए भी है, जहाँ वैश्वीकरण ने बाजारवाद का विस्तार किया है और मनुष्य को मनुष्य बने रहने से रोकने की कोशिश की है। महात्मा गांधी के सारे विचार उनके अनुभवों से छनकर निकले हैं। उनकी सफलता इस बात में है कि वे जो सोचते हैं, वह कहते है और जो कहते हैं, वह करते हैं। कथनी और करनी की दूरी वैश्वीकरण की एक बड़ी चुनौती है। इतनी ही बड़ी चुनौती है आतंकवाद। आर्थिक समृद्धि के अंतहीन लालच ने आतंकवाद को प्रोत्साहित किया। संसार में फैले हुए हर प्रकार के आतंकवाद चाहे वह धार्मिक कट्टरपंथियों का आतंकवाद हो या अमेरिकी दादागिरी, का जवाब गांधीजी का अहिंसा सिद्धांत ही है। उनका रास्ता निर्माण और विकास का रास्ता है। उनका रास्ता विघटन और स्खलन का नहीं है। गांधीजी का चिंतन संसार के हर आदमी को जोड़ता है। दूसरी ओर वैश्वीकरण सिर्फ बाजारों का नेटवर्क मजबूत करता है। न जाने कितने प्रकार की आसंगतियों के बीच महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और चिंतन एक सुनिश्चित दिशा निर्देश देता है। लगातार बदल रही दुनिया में वैश्वीकरण एक जीवन्त प्रक्रिया है और एक गंभीर चुनौती भी। वैश्वीकरण की प्रक्रिया तो पूर्णतः नहीं रोकी जा सकती, लेकिन वैश्वीकरण की चुनौतियों का सामना महात्मा गांधी के विचारों के सहारे संभव है। अकबर इलाहाबादी का एक शेर है- दौरे गर्दू में नया हर रोज एक हंगामा है। शाहनामा हो चुका, अब दौरे गांधीनामा है। हमें स्वीकारना होगा कि गांधी जी अतीत में थे, वर्तमान में हैं और भविष्य में रहेंगे। वैश्वीकरण की चुनौतियां उनके महत्व को विचलित नहीं कर सकती।