
हिंदी-गो: इसी समय, इसी जगह पर बातचीत
लेखिका: योशिको ओकागुचि
प्रकाशक: युबिसाशि (www.yubisashi.com), जापान, वर्ष: 2007, मूल्य: 1500E येन
जापान और भारत के सांस्कृतिक संबंध वर्षों पुराने हैं। महात्मा बुद्ध के काल से ही उगते सूरज के देश जापान और कई प्राचीन सभ्यताओं की जन्मस्थली रहे भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता आया है। आज 21वी सदी में यह सौहार्दपूर्ण संबंध नई ऊँचाइयां हासिल कर रहा। न सिर्फ भारत-जापान के व्यापारिक संबंध प्रगाढ़ हुए है बल्की सांस्कृतिक आयामों में भी अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल हुई है। जापान में लोगों की हिंदी के प्रति रुचि बढ़ी है और वहां हिंदी का अध्यापन शुरू हो चुका है। भारत में भी कई स्थानों (यथा जवाहरलाल नेहरु वि.वि, नई दिल्ली, विश्वभारती शांतिनिकेतन, प.बंगाल आदि) पर जापानी भाषा का अध्ययन और अध्यापन सफलता पूर्वक किया जा रहा है। भारत दर्शन के लिए आने वाले जापानी पर्यटकों के अलावा व्यापारिक यात्राओं पर भारत आने वाले जापानी नागरिकों की संख्या में दिन पर दिन बढ़ोत्तरी हो रही है। भारत यात्रा पर आने वाले इन्हीं यात्रियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए योशिको ओकागुचि ने बड़े ही रोचक ढंग से अपनी पुस्तक हिंदी-गो: इसी समय, इसी जगह पर बातचीत के माध्यम से जापानी भाषियों को सामान्य हिंदी वार्तालाप सीखाने का प्रयास किया है।
मूलत: जापानी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में एक नई पद्धति (Point and Speak Approach) के द्वारा जापानी भाषियों को भारत में हिंदी बोलने के लिए प्रेरित किया गया है। इस पद्धति के तहत पुस्तक का प्रयोग एक त्वरित भाषा साधन के रुप में किया जाता है जिसमें प्रयोगकर्ता पुस्तक में उल्लिखित चित्रों व शब्दों/वाक्यों को लक्ष्य-भाषा बोलने वाले लोगों को दिखाकर व सुनाकर आसानी से सामान्य वार्तालप कर सकता है। पुस्तक कुल 34 छोटे अध्यायों में विभाजित है। प्रत्येक अध्याय में चित्रों, संकेतों और शब्दों/वाक्यों की सहायता से हिंदी में अभिवादन, होटल खोजने, अपना परिचय देने, शहर में घूमने, सामान खरीदने, पता पूछने, डॉक्टर से जांच करवाने, भारत दर्शन करने आदि से संबंधित वार्तालापों का अभ्यास करवाया गया है। जापानी भाषियों की सुविधा के लिए न सिर्फ हिंदी के देवनागरी पाठों के साथ जापानी अनुवाद दिया गया है बल्की हिंदी पाठॊं के जापानी लिप्यंतरण भी जापानी काताकाना लिपि में प्रस्तुत किए गए हैं। पुस्तक कई रंग-बिरंगे चित्रों व संकेतों से सरोबार है जिससे हिंदी सीखना और अधिक रोचक बन जाता है। पुस्तक के परिशिष्ट में विद्यार्थियों के उपयोगार्थ एक जापानी-हिंदी शब्दावली भी दी गई है। निसंदेह भारत भ्रमण करने आए जापानी भाषी यात्रिओं के लिए यह पुस्तक एक रोचक हिंदी शिक्षक और पथ-प्रदर्शक का काम करेगी।
मैं ने आप ने जो सूचना दी वह ध्यान से पढ़ी। मैं ने हिंदी का स्वरचित बृहद थिसारस समांतर कोश 1996 में प्रकाशित करवाया था। हाल ही में मेरा और मेरी पत्नी का द पेंगुइन इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्शनरी प्रकाशित हुआ है। एक बार जापान के भाषा संस्थान के निमंत्रण पर तोकिया भी गया था। मेरी रुचि इस बात में है कि इस द्विभाषी कोश को आधार बना कर और जापान तथा भारत के बढ़ते परस्पर संबंधों और दोनों देशों के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय महत्तल को देखते हुए हिंदी-इंग्लिश-जापानी थिासरस बनाया जाए। कहीं से संसाधन और इनुदान की कोई संभावना हो तो इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। –अरविंद कुमार